Saturday, 1 October 2016

दुल्हन

अरमानों का जोड़ा पहने, संस्कारों की चुनरी ओढे,
अब विदा हो चली है।
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।

फेरों के बाद दुकड़िये मेँ इंतज़ार कर रही है,
पड़ोस की चाची दूर की बुआ सब प्यार कर रही है।
एकटक देखे माँ किवाड़ पर खड़ी है,
सोचती है बेटी होगई बड़ी है।।
कितने स्नेह से सखियों ने मेहन्दी लगाई है,
कितने प्यार से भैया ने डोली सजाई है।
पिताजी आँसू छुपाये व्यस्त हुए है,
शायद दो पल के लिए अभ्यस्त हुए है।।
दुआओं से आज झोली घनी है,
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।

सफ़र मीलों का-सा लगता है,
दुकड़िये से डोली तक।
दुनिया अब सिमट गई थी,
बाबुल से हमजोली तक।।
वो आँगन छोड़ चली है,
वो मधुबन छोड़ चली है।
वो बचपन छोड़ चली है,
वो बंधन छोड़ चली है।।
कुछ नए अरमान मन में संजोकर,
वो विदा हो चली है।
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।

Wednesday, 21 September 2016

सलाह नही चेतावनी है!!

बातों का दौर अब खत्म हुआ,
ये बात तो सबने मानी है।
लाख नकारे चाहे कोई,
ये हरकत पाकिस्तानी है।।

शोक मेँ जिसके डूब गया,
वो जाबाज़ो की क़ुरबानी है।
बहुत किया बर्दाश्त अब तो,
सर से गुज़रा पानी है।।
नामर्दों की टोली का,
सरताज बन के बैठा है।
यहाँ शहीदों पर पूरा देश,
नाज़ करके बैठा है।।
बंदूकों की गोलियाँ,
छाती पर अपने झेली है।
ये भारत माँ के सपूत है,
जिन्होंने खून से होली खेली है।।
पीठ पीछे वार करे ये,
ये तेरी कारिस्तानी है।
लाख नकारे चाहे कोई,
ये हरकत पाकिस्तानी है।।

यहाँ देश के नेता अब भी,
कड़ी निंदा ही करते है।
और वहाँ सैकडों लोगों मेँ,
वो आतंकी ज़िंदा करते है।।
हमारे टुकड़ों पर पलने वाला,
हमपर ही घुर्राता है।
अब वक्त है दिखाने का कि,
कौन बाप कहलाता है।।
जितने चाहो उतने भेजो तुम,
इन बुज़दिल आतंकवादी को।
जिस दिन भी गुस्सा फ़ूट गया,
तुम रोओगे अपनी बर्बादी को।।
अरे अब भी वक्त है मान जा,
क्यों दोगला काम करते हो।
अपना तो तुम्हारा कुछ नही,
क्यों माँ के दूध को बदनाम करते हो।।
इस बार फ़ैसला करना है,
ये हर बच्चे बच्चे ने ठानी है।
लाख नकारे चाहे कोई,
ये हरकत पाकिस्तानी है।।

Saturday, 17 September 2016

आवारा लाश

कोई हक़दार नही, कोई दावेदार नही,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
मेरे होने की वजह भी मेरे पास नही,
मेरी मौजूदगी का मुझे एहसास नही,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

कभी लांघा कभी कुचला तो,
कभी कोई मोटर कार निकल गई।
मैं वहीँ पड़ा रहा और,
दुनिया पार निकल गई।।
रूह कबकि निकल गई,
पर जान अभी बाकि थी।
अरमानों की अर्थी पर,
पहचान अभी बाकि थी।
मौसीक़ी मेरी ज़िन्दगी की
कोई और ही गा गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
मेरी चाहत को कम्बख़्त कोई और ही भा गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

वक्त की घड़ी ख़ामोश है,
कभी कुछ नही कहती।
ये ज़िन्दगी की धारा है,
कभी उल्टी नही बहती।।
छोड़ बंजारे तू,
पछतावे से क्या मिलता है।
थाली पर सिर्फ सजते है,
फूल तो डाली पर ही खिलता है।।
उस फूल के रस को भी वो भँवरा ले गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
और मुझे सिर्फ उड़ती ख़ुशबू दे गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

Saturday, 27 August 2016

किस्मत

ज़िन्दगी भूल गई हमें,
उसे याद है कहानी पर।
दोष भी उन्हें क्या दें, जब
किस्मत लिखी है पानी पर।।

ख़ामोशी से हम जीते थे,
कोई ग़िला अब बचा नही।
सोचा तुझसे बेवफ़ाई करलूँ,
पर ये रस्ता तुम्हारा जँचा नही।।
फक्कड़ स्वभाव चंचल मन,
यारों की टोली हर मौसम सावन।
वो पहली मुलाक़ात के बाद,
सब बातें हो गई पुरानी पर।
ज़िन्दगी भूल गई हमें,
उसे याद है कहानी पर।
दोष भी उन्हें क्या दें, जब
किस्मत लिखी है पानी पर।।

मन पंछी बन बड़ा हुआ,
अब उड़ना इसने सीख लिया।
पानी मिल मिल नहर नदी बन,
अब मुड़ना इसने सीख लिया।।
बात ख़त्म हुई पन्नें पल्टे,
आख़िरकार मसले सारे सुल्टे।
अब भी मुझको हँसता देख,
उसे होती हैरानी पर।
ज़िन्दगी भूल गई हमें,
उसे याद है कहानी पर।
दोष भी उन्हें क्या दें, जब
किस्मत लिखी है पानी पर।।

Saturday, 30 July 2016

ख्वाहिशें

बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरा मक़सद भी तुम हो, मेरी मंज़िल भी,
मेरा साहिल भी तुम हो, मेरी क़ातिल भी।
मेरी कोशिश भी तुम हो, मेरा हासिल भी,
मेरी तन्हाई भी तुम हो, मेरी महफ़िल भी।।
कोई मेरी किस्मत की चाबी लादो उस पार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरा यक़ीन भी तुम हो, मेरा विश्वास भी,
मेरे होने की वजह भी तुम हो, मेरी हर सांस भी।
मेरी उम्मीद भी तुम हो, मेरी आस भी।
मुझसे दूर भी तुम हो, मुझसे पास भी।।
अब मुश्किल है मेरा निकलना तेरे ख़ुमार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरी माशूक़ा भी तुम हो, मेरे महताब भी,
मेरे ग़ुलाब भी तुम हो, मेरे आफ़ताब भी।
मेरी शराब भी तुम हो, मेरी शबाब भी,
मेरी जीत भी तुम हो, मेरा ख़िताब भी।।
जान भी हाज़िर ग़र हँसदो तुम प्यार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरी रंगदारी भी तुम हो, मेरी गिरफ़्तारी भी,
मेरी मल्हारी भी तुम हो, मेरी बंजारी भी।
मेरा भोलापन भी तुम हो, मेरी होशियारी भी,
मेरा ज़मीर भी तुम हो, मेरी ख़ुद्दारी भी।।
अब बंध गया हूँ मैं तेरे इस अटूट प्यार से ,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

Sunday, 10 July 2016

कभी - कभी

कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

वो बचपन सुनेहरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता,
उस आँगन में परियों का डेरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता।
उन बचपन के पतझड़ गीतोँ में,
उन तनहाई के बर्बर मीतो में।
मैं आज भी अकेले लड़ता हूँ,
कभी कभी मैं खुद से बाते करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

कुछ बातें सुनी थी मैंने भी,
जो होता है अच्छा होता है,
जिसे इंसान में भगवन दिखे,
वो बंदा खुदा का सच्चा होता है।
ऐसी बहुत सी बातें थी,
जिन्हें आज जी रहा हूँ मैं।
वो तजुर्बे ही है ज़िन्दगी के,
जिन्हें गीतोँ में सी रहा हूँ मैं।

चाहे एक प्यार का नगमा हो, या
ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी,
हर गीत को अपनी भावनाओं से,
अमर मैं करता हूँ।
कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

a tribute to the legend of hindi cinema dada sahebfaalke awardee shri Santosh Anand ji..

McD

ये ज़िन्दगी की व्यस्तताएं,
ये ज़िन्दगी की आफतें।
ये ज़िन्दगी की समस्याएँ,
ये ज़िन्दगी की शरारतें।

दो पल का यहाँ ठहराव है,
रोज़ की थकान से।
घर जैसा लगाव है,
इस छोटी सी दूकान से।

कहीं दोस्तों की हँसी ठिठोली,
कहीं पानी की होली है।
कही दो मनचले बैठे बतियाये,
वो देख लड़की बैठी भोली है।

कहीं किसी का इंतज़ार कोने में हो रहा है,
उसे अकेले बैठे देख कही प्यार किसी को हो रहा है।
कोई अपने दुखड़े सुलझाये एक दूसरे का हाथ पकड़,
तो कही कुछ लोगों का व्यापर किसी से हो रहा है।

न जाने अनगिनत क़िस्सों का,
पिटारा इसके पास है।
ये मैकडोनाल्ड का कैफ़े है,
ये घर जैसा एहसास है।।

Sunday, 29 May 2016

समन्दर और किनारा

ये दास्ताँ मोहब्बत की सदियों पुरानी है,
ये इश्क़ है, जूनून है, बेबाक़ कहानी है।
वो हर बार गले कुछ मुझसे ऐसे मिलती है,
जैसे हो गई समन्दर किनारे की दीवानी है।

हवाओं की लहरों पर बहती वो आती है,
दो पल किनारे से लग, वापस मुड़ जाती है।
भला ऐसे भी कोई मिलता होगा अपने दिलबर से,
अगले ही पल दूर से वो आती दिख जाती है।

ये मिलने बिछड़ने का सिलसिला रोज़ होता है,
तुम क्या जानो कि मझे कितना अफ़सोस होता है।
जब मिलते है तो बातों का दौर शुरू होता है,
मैं अक्सर बोलता हूँ ,वो अकसर ख़ामोश होता है।

माना कि तुम रानी हो बहुत मग़रूर होती हो,
लेकिन किनारे की बदौलत बहुत मशहूर होती हो।
अगर मैं न रहा तो अस्तित्व तुम्हारा क्या रहा बोलो,
ये रंग भी मेरा है जिसमें तुम बहुत चूर होती हो।

मगर कुछ तो हमारे दरमियाँ होता ज़रूर होगा,
मेरी यादों में तेरा दिल भी रोता ज़रूर होगा।
ये तो किस्मत में लिख दिया है उस ऊपर वाले ने,
पर सपनों में हमारा मिलन होता ज़रूर होगा।।

Sunday, 15 May 2016

वृक्ष

हम पंछी नील गगन के,
एक डाल पर आकर बैठे थे।
अभी तो हमने आँखे खोली,
थोड़े से अक्खड़, थोड़े से ऐंठेे थे।

उस वृक्ष को अपना घर बनाकर,
उड़ना हमने सीख था।
जीवन की कठोर लड़ाई को,
लड़ना हमने सीख था।

शाखाएं उस वृक्ष की,
लदी फलों से रहती थी,
एक अनूठी शक्ति थी, जो
अंदर से उसके बहती थी।

हर पहर हर मौसम से,
वाक़िफ़ हमको वो करवाती थी।
कभी हमे वो झड़प लगाती,
कभी माँ जैसे वो घबराती थी।

अब उड़ना हमने सीख लिया,
उन बहुत सी छलांगों में।
अब परखना हमने सीख लिया,
हर होली में हंगामों में।

आज उड़ गए दूर कहीं,
छोड़ के सारी डालों को।
छोड़ के सारे पर्वत नदियाँ,
लिखने कुछ नए हालों को।

कुछ अंश हमेशा जिएंगे,
उन पंछियों की साँसों में,
उस वृक्ष की याद बनी रहेगी,
उनकी हर दुआ हर आसों में।।

dedicated to my college MBICEM
#MBICEM #farewell2k15 #end_of_clglife

Monday, 4 April 2016

Another milestone conquered by us. "MOKSH- Parvarish ek behter kal ki" a social event successfully organised by "White Shadow" and team. It is an initiative for those kids who cannot get any platform specially the kids from slum area who never feel the taste of art, music, dance etc.
the event is celebrated on the occasion of Republic Day in Royal International School, Baprola, Dwarka.
Mr. Sandeep Yadav (Professional singer and BJP Leader),
Mr. Pawan Kumar Bhoot (Owner of Police Public Press),
Mr. Satish Kaul (CEO of ALS Production),
Mr. Manik Singh (MD of ALS Production),
Mr. Arun Kumar Singh (Director of Hotelity),
Mr. Sandeep Mitra (Owner of RED RIBBONS Entertainment)
are our special guest for the day and also Vanya Singh and Sakshi are our special performers.
The success of this event is because of the team of White Shadow but i want to thank specially Chandan SahSachin KumaarAditya KentSuraj KumarAarav Kumar,Tushar PalRahul Kapoor and of course Anupam Anand Jha.
The credit goes to u guys. Now don't be so excited and get ready for another blast..

Saturday, 2 January 2016

वो रात

वो अधरि-सी रात थी,
वो अधसोयी-सी रात थी।
आसमाँ जैसे सूना हो गया,
समय विरह का दूना हो गया।

हम यूँ खामोश बैठे थे,
आँखों में ग़म समेटे थे।
होंठो ने हँसी को ओढ़ा था,
शायद किस्मत ने मुँह मोड़ा था।

शोर ख़ामोशी का बड़ रहा था,
दिल पर कोई दर्द गढ़ रहा था।
अँधेरे आसमां के तले बैठे थे,
लगा किसी बोझ में दबे बैठे थे।

थक गया है दिल,
हर आस को हकीकत देते-देते,
अब सोता हूँ, इसे आराम देता हूँ,
और फिरसे देखता हूँ वही सपने
मीठे-मीठे।।

नन्ही परी

स्वर्ग से जैसे उतर आई,
कोई नन्ही परी।
झोली में अपने खुशियाँ लाई,
कोई नन्ही परी।

आँगन में चहके दिन-दोपहरी,
मन-मन में महके हिरन कस्तूरी|
मुस्काये तो सबका दिन बनादे,
आंसू बहाये तो सबको रुलादे|
आसमां में जैसे घटा छाई,
ऐसी है नन्ही परी।
स्वर्ग से जैसे उतर आई,
कोई नन्ही परी।

सोचे बिना सब काम वो करती,
समझे बिना सबसे वो लड़ती।
रूठे खुद ही, खुद ही मनाये,
पलभर का गुस्सा, पल में उड़ाए।
डाल पर कली कोई खिल आई,
ऐसी है नन्ही परी।
स्वर्ग से जैसे उतर आई,
कोई नन्ही परी।

मासूमियत तेरे चेहरे पर,
यूँही बनी रहे।
ओढ़नी तेरी रंगो से,
यूँही घनी रहे।
प्यार ही प्यार मिले तुझको,
दुःख सब दूर, डर जाये।
आज के दिन दुआ है मेरी,
दुआओं से झोली तेरी भर जाये।
ओस की बूंदे पत्तो पर जैसे उतर आई,
ऐसी है नन्ही परी।
स्वर्ग से जैसे उतर आई,
कोई नन्ही परी।
झोली में अपनी खुशियाँ लाई,
कोई नन्ही परी।।

happy birthday lil sis....