Sunday, 10 July 2016

कभी - कभी

कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

वो बचपन सुनेहरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता,
उस आँगन में परियों का डेरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता।
उन बचपन के पतझड़ गीतोँ में,
उन तनहाई के बर्बर मीतो में।
मैं आज भी अकेले लड़ता हूँ,
कभी कभी मैं खुद से बाते करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

कुछ बातें सुनी थी मैंने भी,
जो होता है अच्छा होता है,
जिसे इंसान में भगवन दिखे,
वो बंदा खुदा का सच्चा होता है।
ऐसी बहुत सी बातें थी,
जिन्हें आज जी रहा हूँ मैं।
वो तजुर्बे ही है ज़िन्दगी के,
जिन्हें गीतोँ में सी रहा हूँ मैं।

चाहे एक प्यार का नगमा हो, या
ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी,
हर गीत को अपनी भावनाओं से,
अमर मैं करता हूँ।
कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

a tribute to the legend of hindi cinema dada sahebfaalke awardee shri Santosh Anand ji..

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