बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।
मेरा मक़सद भी तुम हो, मेरी मंज़िल भी,
मेरा साहिल भी तुम हो, मेरी क़ातिल भी।
मेरी कोशिश भी तुम हो, मेरा हासिल भी,
मेरी तन्हाई भी तुम हो, मेरी महफ़िल भी।।
कोई मेरी किस्मत की चाबी लादो उस पार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।
मेरा यक़ीन भी तुम हो, मेरा विश्वास भी,
मेरे होने की वजह भी तुम हो, मेरी हर सांस भी।
मेरी उम्मीद भी तुम हो, मेरी आस भी।
मुझसे दूर भी तुम हो, मुझसे पास भी।।
अब मुश्किल है मेरा निकलना तेरे ख़ुमार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।
मेरी माशूक़ा भी तुम हो, मेरे महताब भी,
मेरे ग़ुलाब भी तुम हो, मेरे आफ़ताब भी।
मेरी शराब भी तुम हो, मेरी शबाब भी,
मेरी जीत भी तुम हो, मेरा ख़िताब भी।।
जान भी हाज़िर ग़र हँसदो तुम प्यार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।
मेरी रंगदारी भी तुम हो, मेरी गिरफ़्तारी भी,
मेरी मल्हारी भी तुम हो, मेरी बंजारी भी।
मेरा भोलापन भी तुम हो, मेरी होशियारी भी,
मेरा ज़मीर भी तुम हो, मेरी ख़ुद्दारी भी।।
अब बंध गया हूँ मैं तेरे इस अटूट प्यार से ,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।
Nice 👍
ReplyDeleteBs tera 😁
ReplyDeleteWell written
ReplyDeleteNice
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