Saturday, 17 September 2016

आवारा लाश

कोई हक़दार नही, कोई दावेदार नही,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
मेरे होने की वजह भी मेरे पास नही,
मेरी मौजूदगी का मुझे एहसास नही,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

कभी लांघा कभी कुचला तो,
कभी कोई मोटर कार निकल गई।
मैं वहीँ पड़ा रहा और,
दुनिया पार निकल गई।।
रूह कबकि निकल गई,
पर जान अभी बाकि थी।
अरमानों की अर्थी पर,
पहचान अभी बाकि थी।
मौसीक़ी मेरी ज़िन्दगी की
कोई और ही गा गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
मेरी चाहत को कम्बख़्त कोई और ही भा गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

वक्त की घड़ी ख़ामोश है,
कभी कुछ नही कहती।
ये ज़िन्दगी की धारा है,
कभी उल्टी नही बहती।।
छोड़ बंजारे तू,
पछतावे से क्या मिलता है।
थाली पर सिर्फ सजते है,
फूल तो डाली पर ही खिलता है।।
उस फूल के रस को भी वो भँवरा ले गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।
और मुझे सिर्फ उड़ती ख़ुशबू दे गया,
ये ज़िन्दगी है एक आवारा लाश।।

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