ये दास्ताँ मोहब्बत की सदियों पुरानी है,
ये इश्क़ है, जूनून है, बेबाक़ कहानी है।
वो हर बार गले कुछ मुझसे ऐसे मिलती है,
जैसे हो गई समन्दर किनारे की दीवानी है।
हवाओं की लहरों पर बहती वो आती है,
दो पल किनारे से लग, वापस मुड़ जाती है।
भला ऐसे भी कोई मिलता होगा अपने दिलबर से,
अगले ही पल दूर से वो आती दिख जाती है।
ये मिलने बिछड़ने का सिलसिला रोज़ होता है,
तुम क्या जानो कि मझे कितना अफ़सोस होता है।
जब मिलते है तो बातों का दौर शुरू होता है,
मैं अक्सर बोलता हूँ ,वो अकसर ख़ामोश होता है।
माना कि तुम रानी हो बहुत मग़रूर होती हो,
लेकिन किनारे की बदौलत बहुत मशहूर होती हो।
अगर मैं न रहा तो अस्तित्व तुम्हारा क्या रहा बोलो,
ये रंग भी मेरा है जिसमें तुम बहुत चूर होती हो।
मगर कुछ तो हमारे दरमियाँ होता ज़रूर होगा,
मेरी यादों में तेरा दिल भी रोता ज़रूर होगा।
ये तो किस्मत में लिख दिया है उस ऊपर वाले ने,
पर सपनों में हमारा मिलन होता ज़रूर होगा।।
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