Saturday, 2 January 2016

वो रात

वो अधरि-सी रात थी,
वो अधसोयी-सी रात थी।
आसमाँ जैसे सूना हो गया,
समय विरह का दूना हो गया।

हम यूँ खामोश बैठे थे,
आँखों में ग़म समेटे थे।
होंठो ने हँसी को ओढ़ा था,
शायद किस्मत ने मुँह मोड़ा था।

शोर ख़ामोशी का बड़ रहा था,
दिल पर कोई दर्द गढ़ रहा था।
अँधेरे आसमां के तले बैठे थे,
लगा किसी बोझ में दबे बैठे थे।

थक गया है दिल,
हर आस को हकीकत देते-देते,
अब सोता हूँ, इसे आराम देता हूँ,
और फिरसे देखता हूँ वही सपने
मीठे-मीठे।।

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