Thursday 28 May 2020

तेरे ख़त

कोई देख न ले ये हाल, मैं ये तेरे ख़त छुपा देता हूँ,
कोई झाँक रहा है खिड़की से, मैं ये चिराग़ बुझा देता हूँ।

रातभर अँधेरे से कई बाजियाँ खेली मैंने,
कौन हारा कौन जीता, मैं ये हिसाब सुबह देता हूँ।

तुमसे इश्क़ करने के लाखों बहाने दिए, सब बेसर रहे,
वो यूँ ही छोड़कर चले जाते हैं, जब मैं ये एक वजह देता हूँ।

साँसे जबतक हैं मैं साँस नही ले पाउँगा,
तुम्हें याद रखने की ख़ुद को मैं ये सज़ा देता हूँ।

अभी भी बाकि है उस बाग़ में कुछ सूखे फूल,
आज तुम्हारे खतों में रखकर मैं ये जला देता हूँ।।

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