और एक ऐसी ही रंगीन शाम थी
लालिमा से आसमान भरा हुआ था,
हल्के से चाँद ऊफूक पर दस्तक दे चुका था
और हम तुम बाँहे थामे टहल रहे थे,
तुम मेरी एक बात पर हँस रही थीं
और मैं बस तुम्हें घूरे जा रहा था।
तुम शर्मा के नीचे देखने लगीं
मैं तुम्हें देख मुस्कुरा रहा था,
और फिर कुछ देर यूँ ही खामोश
हम तुम चल रहे थे,
एक लट बार बार तुम्हारी आँखों
को परेशान कर रही थी,
फिर तुमने अपनी उंगली से लपेट कर
धीरे से कान के पीछे छुपा लिया,
और फिर एक बार मैं तुम्हारी
इस अदा पर दिल हार बैठा।
अपनी धड़कनों को काबू करके मैंने
तुम्हें हल्के से रोका,
और हर शाम की तरह तुमसे
अपने प्यार का इज़हार किया,
तुम वैसे ही मुस्कुराई और
उसी अदा के साथ शरमाई,
फिर मेरा हाथ पकड़ धीरे से
सिर झुका कर हाँ कह दिया।
हम दोनों ही मुस्कुराये और
वापस घर को चल दिए,
हर शाम का ये सिलसिला
बरसों से चलता रहा,
आज हम कहीं बाहर नही टहलते
मगर बगीचे में बैठे मैं आज भी
तुमसे तुम्हारा हाथ माँगता हूँ,
और तुम आज भी उसी अदा के साथ
मुस्कुरा कर हाँ कह देती हो।।
Beautiful imagination..
ReplyDeleteKeep it up..