और मैं उन्हें पलट कर देख नही पाया
ट्रैन की आख़िरी सिटी पर भी नही देखा,
जानता था कि पलट कर देखा तो
अपने आँसू रोक नही पाउँगा,
पापा ये जानते थे इसीलिए मुस्कुरा रहे थे
यकीनन अपने आँसू भी छुपा रहे थे,
माँ रो पड़ती है जब भी मैं जाता हूँ
इसीलिए कभी वो स्टेशन नही आती,
बस मेरी बहन ही है जो
हमेशा की तरह मुझसे लड़ती हुई आई थी,
खूब हँसी थी और मुस्कुराई थी,
स्टेशन पहुँचते ही वो भी उदास हो गई
मगर मुस्कुराते हुए जल्दी आने का वादा ले गई,
अभी कल ही की बात थी शायद
छुट्टी में मैं अपने घर आया था,
अभी तो जी भर उन्हें देख भी नही पाया था
कि वापस जा रहा हूँ,
मुझे पेट भर खिलाने की कोशिश
माँ ने जाते हुए भी की,
ज़िन्दगी के बारे में एक और बात
पापा ने बताई,
जाते हुए बचपन की लड़ाई
फिर से मेरी बहन ने की,
हम स्टेशन पर पहुँच गए हैं
और मैं उन्हें पलट कर देख नही पाया,
बस उनकी यादें साथ लेके मैं
ज़िन्दगी पर चल पड़ा हूँ,
उनकी सिखाई बातें लिए
चल पड़ा हूँ कुछ नए तजुर्बे लिखने।।
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