Friday, 21 September 2018

शाम

और एक ऐसी ही रंगीन शाम थी
लालिमा से आसमान भरा हुआ था,
हल्के से चाँद ऊफूक पर दस्तक दे चुका था
और हम तुम बाँहे थामे टहल रहे थे,
तुम मेरी एक बात पर हँस रही थीं
और मैं बस तुम्हें घूरे जा रहा था।

तुम शर्मा के नीचे देखने लगीं
मैं तुम्हें देख मुस्कुरा रहा था,
और फिर कुछ देर यूँ ही खामोश
हम तुम चल रहे थे,
एक लट बार बार तुम्हारी आँखों
को परेशान कर रही थी,
फिर तुमने अपनी उंगली से लपेट कर
धीरे से कान के पीछे छुपा लिया,
और फिर एक बार मैं तुम्हारी
इस अदा पर दिल हार बैठा।

अपनी धड़कनों को काबू करके मैंने
तुम्हें हल्के से रोका,
और हर शाम की तरह तुमसे
अपने प्यार का इज़हार किया,
तुम वैसे ही मुस्कुराई और
उसी अदा के साथ शरमाई,
फिर मेरा हाथ पकड़ धीरे से
सिर झुका कर हाँ कह दिया।

हम दोनों ही मुस्कुराये और
वापस घर को चल दिए,
हर शाम का ये सिलसिला
बरसों से चलता रहा,
आज हम कहीं बाहर नही टहलते
मगर बगीचे में बैठे मैं आज भी
तुमसे तुम्हारा हाथ माँगता हूँ,
और तुम आज भी उसी अदा के साथ
मुस्कुरा कर हाँ कह देती हो।।

Friday, 14 September 2018

छुट्टी का आखिरी दिन

और मैं उन्हें पलट कर देख नही पाया
ट्रैन की आख़िरी सिटी पर भी नही देखा,
जानता था कि पलट कर देखा तो
अपने आँसू रोक नही पाउँगा,
पापा ये जानते थे इसीलिए मुस्कुरा रहे थे
यकीनन अपने आँसू भी छुपा रहे थे,
माँ रो पड़ती है जब भी मैं जाता हूँ
इसीलिए कभी वो स्टेशन नही आती,
बस मेरी बहन ही है जो
हमेशा की तरह मुझसे लड़ती हुई आई थी,
खूब हँसी थी और मुस्कुराई थी,
स्टेशन पहुँचते ही वो भी उदास हो गई
मगर मुस्कुराते हुए जल्दी आने का वादा ले गई,

अभी कल ही की बात थी शायद
छुट्टी में मैं अपने घर आया था,
अभी तो जी भर उन्हें देख भी नही पाया था
कि वापस जा रहा हूँ,
मुझे पेट भर खिलाने की कोशिश
माँ ने जाते हुए भी की,
ज़िन्दगी के बारे में एक और बात
पापा ने बताई,
जाते हुए बचपन की लड़ाई
फिर से मेरी बहन ने की,

हम स्टेशन पर पहुँच गए हैं
और मैं उन्हें पलट कर देख नही पाया,
बस उनकी यादें साथ लेके मैं
ज़िन्दगी पर चल पड़ा हूँ,
उनकी सिखाई बातें लिए
चल पड़ा हूँ कुछ नए तजुर्बे लिखने।।

Saturday, 8 September 2018

आँगन की धूप

सुनहरी धूप खिली है मेरे आँगन में
आज बहुत दिनों के बाद,
सोच रहा हूँ सुखा लूँ
रूह को तार पे।
बहुत दिनों से बे-ज़ार
ठंडे कोने में पड़ी हुई है,
कुछ शिकनें सिलवटें आ गई हैं
सफ़ेद काले चक्कते भी देखे थे।
धुल तो गई कई दफ़ा थी रूह
मगर दाग़ नही गए थे,
आज सुनहरी धूप खिली है
बहुत दिनों के बाद।
रूह को तार पर सुखा कर देखता हूँ
शायद वो दाग आप ही चले जाएँ,
नही तो कोई बात नही
यूँ ही बहाने से एक बार फिर
धूप ही देख लेगी रूह मेरी।।