Saturday, 30 July 2016

ख्वाहिशें

बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरा मक़सद भी तुम हो, मेरी मंज़िल भी,
मेरा साहिल भी तुम हो, मेरी क़ातिल भी।
मेरी कोशिश भी तुम हो, मेरा हासिल भी,
मेरी तन्हाई भी तुम हो, मेरी महफ़िल भी।।
कोई मेरी किस्मत की चाबी लादो उस पार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरा यक़ीन भी तुम हो, मेरा विश्वास भी,
मेरे होने की वजह भी तुम हो, मेरी हर सांस भी।
मेरी उम्मीद भी तुम हो, मेरी आस भी।
मुझसे दूर भी तुम हो, मुझसे पास भी।।
अब मुश्किल है मेरा निकलना तेरे ख़ुमार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरी माशूक़ा भी तुम हो, मेरे महताब भी,
मेरे ग़ुलाब भी तुम हो, मेरे आफ़ताब भी।
मेरी शराब भी तुम हो, मेरी शबाब भी,
मेरी जीत भी तुम हो, मेरा ख़िताब भी।।
जान भी हाज़िर ग़र हँसदो तुम प्यार से,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

मेरी रंगदारी भी तुम हो, मेरी गिरफ़्तारी भी,
मेरी मल्हारी भी तुम हो, मेरी बंजारी भी।
मेरा भोलापन भी तुम हो, मेरी होशियारी भी,
मेरा ज़मीर भी तुम हो, मेरी ख़ुद्दारी भी।।
अब बंध गया हूँ मैं तेरे इस अटूट प्यार से ,
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से,
जब माँगू बस तुझे ही माँगू, हर मक्का मज़ार से।
बस इतना ही चाहूँ मैं उस पर्वरदीगार से।।

Sunday, 10 July 2016

कभी - कभी

कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

वो बचपन सुनेहरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता,
उस आँगन में परियों का डेरा होता तो,
शायद मैं यहाँ न होता।
उन बचपन के पतझड़ गीतोँ में,
उन तनहाई के बर्बर मीतो में।
मैं आज भी अकेले लड़ता हूँ,
कभी कभी मैं खुद से बाते करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

कुछ बातें सुनी थी मैंने भी,
जो होता है अच्छा होता है,
जिसे इंसान में भगवन दिखे,
वो बंदा खुदा का सच्चा होता है।
ऐसी बहुत सी बातें थी,
जिन्हें आज जी रहा हूँ मैं।
वो तजुर्बे ही है ज़िन्दगी के,
जिन्हें गीतोँ में सी रहा हूँ मैं।

चाहे एक प्यार का नगमा हो, या
ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी,
हर गीत को अपनी भावनाओं से,
अमर मैं करता हूँ।
कभी कभी मैं ख़ुद से बातें करता हूँ,
अपने जीवन संघर्ष मैं खुद से साझे करता हूँ।

a tribute to the legend of hindi cinema dada sahebfaalke awardee shri Santosh Anand ji..

McD

ये ज़िन्दगी की व्यस्तताएं,
ये ज़िन्दगी की आफतें।
ये ज़िन्दगी की समस्याएँ,
ये ज़िन्दगी की शरारतें।

दो पल का यहाँ ठहराव है,
रोज़ की थकान से।
घर जैसा लगाव है,
इस छोटी सी दूकान से।

कहीं दोस्तों की हँसी ठिठोली,
कहीं पानी की होली है।
कही दो मनचले बैठे बतियाये,
वो देख लड़की बैठी भोली है।

कहीं किसी का इंतज़ार कोने में हो रहा है,
उसे अकेले बैठे देख कही प्यार किसी को हो रहा है।
कोई अपने दुखड़े सुलझाये एक दूसरे का हाथ पकड़,
तो कही कुछ लोगों का व्यापर किसी से हो रहा है।

न जाने अनगिनत क़िस्सों का,
पिटारा इसके पास है।
ये मैकडोनाल्ड का कैफ़े है,
ये घर जैसा एहसास है।।