माँ मुझे मत भेज परदेस,
डर लगता है।
तेरे आँचल से दूर जाने में,
मुझे डर लगता है।
तेरा वो खाना लेके पीछे दौड़ना,
मेरा वो तेरे साथ लुक्का-छिपी खेलना।
सब छोड़कर जाने में,
मुझे डर लगता है।
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है।
जब बुखार में, मेरी आह निकलती है,
तो आंसू तेरे भी टपकते है।
जब चोट मुझे लगती है,
तो प्यार से दवाई तू लगाती है।
तेरे इस प्यार को छोड़ने से,
मुझे डर लगता है।
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है।
जब अंधेरों से, मैं घिर जाता ,
तब हाथ पकड़कर तू निकाले।
ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
गिरने से भी तू सम्भाले।
जब कोई इनाम जीत कर लाता हूँ,
तो खुश बहुत तू होती है।
जब जीतने से मैं रह जाता हूँ,
फिर भी शाबाशी तू देती है।
मुझ पर तेरे इस विश्वास को,
तोड़ने से डर लगता है।
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है।
तू मेरे जीवन की डोर है,
क्यों मैं न ये समझ सका।
तेरे प्यार की वजह से ही,
मैं अब तक हूँ जी सका।
क्यों मैं इतना बड़ा हुआ,
जो तेरे प्यार को मैं भूल गया।
तुझे खोने के बाद ये एहसास हुआ,
कि तेरे बिना सब छूट गया।
अब जाके तेरी कीमत समझ में आई,
जब मैंने तुझको छोड़ दिया।
पर माँ, तू मुझे छोड़ना मत,
मुझे डर लगता है।
तेरे दूर जाने से,
मुझे आज भी डर लगता है॥
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