Wednesday, 6 May 2015

उड़ना चाहता हूँ मैं

उड़ना चाहता हूँ मैं,
पंछियों की तरह,
पंछियों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

आसमान में गोते लगाती,
हवा को चीरती हुई,
चीलों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

हवा की गति से उड़ते हुए,
जो सब पर प्यार बरसाते हैं,
उन विशाल बादलों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

आसमान में उड़ते हुए,
जब डोर उसकी  कट जाती है।
उड़ते-उड़ते उसकी डोर,
फिर से संभल जाती है।
उस कटी-पतंग की तरह,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

नील गगन को छूना चाहता हूँ मैं।
एक बार उन पंछियों के साथ,
 उड़ना चाहता हूँ मैं। 

No comments:

Post a Comment