Wednesday, 6 May 2015

तजुर्बा

सड़क किनारे बैठा मैं,
दुनियां संवारता चला।
मौत का सामान देकर,
मैं ज़िंदगी गुज़ारता चला।

सैंकड़ों सावन गुज़र गए,
हर बारिश में मैं डंटा रहा।
दुनियादारी, भूख-प्यास,
बस इन सब में मैं बंटा रहा।

हर सिक्के, हर नोट को लेकर,
तसल्ली मैं करता हूँ।
क्या ये वही चीज़ है
जिससे अपना पेट मैं भरता हूँ?

देते हैं लोग,
दया दिखाकर,
सबको मना मैं करता हूँ।
तुम अदा न कर सकोगे,
जो क़र्ज़ मैं भरता हूँ।

आँखे मेरी धुंधला गई,
हाथ भी कपकपाते है।
करदो आज़ाद अब उस पंछी को,
पिंजरे में जो छटपटाते है।

मर जाऊंगा मैं जब,
किसी को फर्क नहीं पड़ेगा।
लड़ते-लड़ते मैं मर गया,
कल कोई और आकर लड़ेगा।

पर तू चिंता मत कर ज़िंदगी,
तू अकेली नहीं रहेगी।
आज तक मैं साथ था,
कल को किसी और के साथ चलेगी,
किसी और के साथ चलेगी॥


माँ

माँ मुझे मत भेज परदेस,
डर लगता है। 
तेरे आँचल से दूर जाने में,
मुझे डर लगता है। 

तेरा वो खाना लेके पीछे दौड़ना,
मेरा वो तेरे साथ लुक्का-छिपी खेलना। 
सब छोड़कर जाने में,
मुझे डर लगता है। 
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है। 

जब बुखार में, मेरी आह निकलती है,
तो आंसू तेरे भी टपकते है। 
जब चोट मुझे लगती है,
तो प्यार से दवाई तू लगाती है। 
तेरे इस प्यार को छोड़ने से,
मुझे डर लगता है। 
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है। 

जब अंधेरों से, मैं घिर जाता ,
तब हाथ पकड़कर तू निकाले। 
ज़िंदगी के हर मोड़ पर,
गिरने से भी तू सम्भाले। 
जब कोई इनाम जीत कर लाता हूँ,
तो खुश बहुत तू होती है। 
जब जीतने से मैं रह जाता हूँ,
फिर भी शाबाशी तू देती है। 
मुझ पर तेरे इस विश्वास को,
तोड़ने से डर लगता है। 
माँ मुझे मत भेज परदेस,
मुझे डर लगता है। 

तू मेरे जीवन की डोर है,
क्यों मैं  न ये समझ सका। 
तेरे प्यार की वजह से ही,
मैं अब तक हूँ जी सका। 
क्यों मैं इतना बड़ा हुआ,
जो तेरे प्यार को मैं भूल गया। 
तुझे खोने के बाद ये एहसास हुआ,
कि तेरे बिना सब छूट गया। 
अब जाके तेरी कीमत समझ में आई,
जब मैंने तुझको छोड़ दिया। 

पर माँ, तू मुझे छोड़ना मत,
मुझे डर लगता है। 
तेरे दूर जाने से,
मुझे आज भी डर लगता है॥ 

उड़ना चाहता हूँ मैं

उड़ना चाहता हूँ मैं,
पंछियों की तरह,
पंछियों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

आसमान में गोते लगाती,
हवा को चीरती हुई,
चीलों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

हवा की गति से उड़ते हुए,
जो सब पर प्यार बरसाते हैं,
उन विशाल बादलों के साथ,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

आसमान में उड़ते हुए,
जब डोर उसकी  कट जाती है।
उड़ते-उड़ते उसकी डोर,
फिर से संभल जाती है।
उस कटी-पतंग की तरह,
उड़ना चाहता हूँ मैं।

नील गगन को छूना चाहता हूँ मैं।
एक बार उन पंछियों के साथ,
 उड़ना चाहता हूँ मैं। 

शिक्षक

                           

अंधेरों में भटकते बच्चों के लिए,
जो ज्ञान की लॉ जलाते हैं।
उलझे हुए रास्तों में से,
सही राह दिखाते है।
बच्चों का भविष्य बनाते जो,
वही शिक्षक कहलाते है।

खेल-खेल में सिखाते है,
वो ज्ञान की बात बताते है।
हंसी-मज़ाक भी करते है,
कभी गंभीर हो जाते है।
कभी बच्चों की बात सुने,
कभी अपने किस्से सुनाते है।
बच्चों का भविष्य बनाते जो,
वही शिक्षक कहलाते है।

कभी पिता बनकर समझाते हैं,
कभी दोस्ती में मौज उड़ाते है।
कभी बच्चों में बच्चे बन जाते हैं,
कभी गुस्से में फटकार लगाते हैं।
हर डाँट में अपना प्यार छुपाते हैं,
तो कभी दूसरों की डाँट से बचाते है।
बच्चों का भविष्य बनाते जो,
वही शिक्षक कहलाते है।

इनकी आँखों से,
सपने हम बुन  जाते है।
प्यार भरे साथ से इनके,
कुछ सच भी हो जाते हैं।
इस अनमोल जीवन में हमारे,
ये एहम किरदार निभाते हैं,
सपनों के महल को हमारे,
ज्ञान के फूलों से सजाते है।
जो बच्चों का भविष्य बनाते हैं,
वही शिक्षक कहलाते है॥