अच्छी बुरी सब आदतें चली गईं बस तेरी जुदाई नही जाती,
ख़ुद में से तो मैं भी चला गया बस तेरी रुसवाई नही जाती।
कैसे कहें तुझसे कि क्यों हैं परेशां,
बोल के तो हर बात बताई नही जाती।
एक दौर था जब ये होंठ खामोश रहते थे,
अब तो चीख़ भी किसी को सुनाई नही जाती।
होंठो की बातें अक्सर आँखे कर लेती थी,
अब तो लफ़्ज़ों में भी बात समझाई नही जाती।
मेरे नाख़ुदा हो तुम लो पतवार संभालो,
यूँ किनारे से फ़िक्र जताई नही जाती।
दिल की हर चीज़ टूट गई उनके देखने से,
अब और मुझसे दिल्लगी दिखाई नही जाती।
मेरे अल्फ़ाज़ ने बुझा दी अज़ीयत कई दिलों की,
बस अपने ही दिल की आग बुझाई नही जाती।।
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