दिल मे जो दफ़्न है वो बताऊँ कैसे,
जो न बताऊँ तो फिर छुपाऊँ कैसे।।
जो अल्फ़ाज़ अभी तक समझा नही पाए,
उस प्यार को तुम्हें जताऊँ कैसे।
जिस ख़्याल का तुम्हारे ख़्याल पर पहरा है,
उस पहरे को ख़्याल से हटाऊँ कैसे।
न जाने कैसी पशोपेश में तुमने उलझा रखा है,
तुम्हें जीतने के लिए तुम्हें हराऊँ कैसे।
तुमने तो कह दिया तुम्हें भूल जाना अच्छा है,
ख़ुद को पाने के लिए तुम्हें गवाऊँ कैसे।।
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