Sunday, 29 May 2016

समन्दर और किनारा

ये दास्ताँ मोहब्बत की सदियों पुरानी है,
ये इश्क़ है, जूनून है, बेबाक़ कहानी है।
वो हर बार गले कुछ मुझसे ऐसे मिलती है,
जैसे हो गई समन्दर किनारे की दीवानी है।

हवाओं की लहरों पर बहती वो आती है,
दो पल किनारे से लग, वापस मुड़ जाती है।
भला ऐसे भी कोई मिलता होगा अपने दिलबर से,
अगले ही पल दूर से वो आती दिख जाती है।

ये मिलने बिछड़ने का सिलसिला रोज़ होता है,
तुम क्या जानो कि मझे कितना अफ़सोस होता है।
जब मिलते है तो बातों का दौर शुरू होता है,
मैं अक्सर बोलता हूँ ,वो अकसर ख़ामोश होता है।

माना कि तुम रानी हो बहुत मग़रूर होती हो,
लेकिन किनारे की बदौलत बहुत मशहूर होती हो।
अगर मैं न रहा तो अस्तित्व तुम्हारा क्या रहा बोलो,
ये रंग भी मेरा है जिसमें तुम बहुत चूर होती हो।

मगर कुछ तो हमारे दरमियाँ होता ज़रूर होगा,
मेरी यादों में तेरा दिल भी रोता ज़रूर होगा।
ये तो किस्मत में लिख दिया है उस ऊपर वाले ने,
पर सपनों में हमारा मिलन होता ज़रूर होगा।।

Sunday, 15 May 2016

वृक्ष

हम पंछी नील गगन के,
एक डाल पर आकर बैठे थे।
अभी तो हमने आँखे खोली,
थोड़े से अक्खड़, थोड़े से ऐंठेे थे।

उस वृक्ष को अपना घर बनाकर,
उड़ना हमने सीख था।
जीवन की कठोर लड़ाई को,
लड़ना हमने सीख था।

शाखाएं उस वृक्ष की,
लदी फलों से रहती थी,
एक अनूठी शक्ति थी, जो
अंदर से उसके बहती थी।

हर पहर हर मौसम से,
वाक़िफ़ हमको वो करवाती थी।
कभी हमे वो झड़प लगाती,
कभी माँ जैसे वो घबराती थी।

अब उड़ना हमने सीख लिया,
उन बहुत सी छलांगों में।
अब परखना हमने सीख लिया,
हर होली में हंगामों में।

आज उड़ गए दूर कहीं,
छोड़ के सारी डालों को।
छोड़ के सारे पर्वत नदियाँ,
लिखने कुछ नए हालों को।

कुछ अंश हमेशा जिएंगे,
उन पंछियों की साँसों में,
उस वृक्ष की याद बनी रहेगी,
उनकी हर दुआ हर आसों में।।

dedicated to my college MBICEM
#MBICEM #farewell2k15 #end_of_clglife