जिस सम्त को नज़र उठाकर देखा,
इस दर्द की दवा को आज़माकर देखा।
बेअसर हो गए हैं बेहिसाब दर्द के,
हर नुस्ख़ा उलट-पलट घुमाकर देखा।
फिर लगा शायद ये ख़ुर्शीद की ख़ता है,
चलो आज रात इसे भी बुझाकर देखा।
शायद दूसरे मेहबूब की गली में शफ़ा मिले,
तो हर गली में मेहबूब बनाकर देखा।
जब कहीं सुनवाई नही तो वो सुनता है,
आख़िर में ख़ुदा से दामन फैलाकर देखा।
अब और नही जिया जाता है मियाँ,
हमने ख़ुद में से कहीं जाकर देखा।
जब सब घूमकर वापस तेरे दीदार को आये,
तब कहीं समझे जब तुमने शर्माकर देखा।।
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