Sunday, 20 May 2018

अधूरा मैं

पता नही क्यों वो समझते हैं कि मुझे कोई कमी नही है,
कि मेरी आँखों में नमी नही है।
पता नही क्यों उन्हें लगता है कि मैं बहुत समझदार हूँ,
हर दुख हर ग़म से बे-असरदार हूँ।

मगर कभी देख सको तो इन आँखों के नीचे
काले निशानों को देखना,
अगर कभी देख सको तो उन आँखों में सूख चुके
अरमानों को देखना।
कभी सुन सको तो मेरी खामोशी की चीख़ों को सुनना,
कभी छू सको तो उन तरसते एहसासों को छूना।

तब कहीं शायद तुम मुझे देख सकोगी,
तब कहीं शायद तुम मुझे समझ सकोगी।
तब कहीं शायद तुम समझोगी मैं क्यों बरसता हूँ,
तब कहीं शायद तुम समझोगी मैं क्यों तरसता हूँ।

मैं तरसता हूँ उस मुस्कुराहट के लिए
जिसकी वजह मैं हूँ,
मैं तरसता हूँ उस परेशानी के लिए
जो मेरे लिए हो।
मैं तरसता हूँ उस ज़िद के लिए,
जो कोई मुझसे करे,
मैं तरसता हूँ उस लड़ाई के लिए
जो कोई मुझसे मेरे लिए लड़े।

अपना भी एक सपना है कि कभी
मैं भी किसी के सपने से गुज़रूँ,
कभी कोई ऐसा भी हो कि जिसे
मेरे हाथ की गरमाहट से आराम मिल जाये।

मैं तरसता हूँ किसी ऐसे के लिए
जिसके लिए मैं ज़रूरी हूँ,
मैं तरसता हूँ किसी के लिए
जिसका मन सिर्फ़ मेरे सामने खुले।
मैं तरसता हूँ किसी के लिए
जो मुझे अपनी तन्हाई का साथी माने,
मैं तरसता हूँ किसी ऐसे के लिए
जो मुझसे सब हाल खोल के रख दे।
मैं तरसता हूँ किसी ऐसे के लिए
जिससे ज़िन्दगी का भी कोई पर्दा न हो।।

Friday, 4 May 2018

कैसे

दिल मे जो दफ़्न है वो बताऊँ कैसे,
जो न बताऊँ तो फिर छुपाऊँ कैसे।।

जो अल्फ़ाज़ अभी तक समझा नही पाए,
उस प्यार को तुम्हें जताऊँ कैसे।

जिस ख़्याल का तुम्हारे ख़्याल पर पहरा है,
उस पहरे को ख़्याल से हटाऊँ कैसे।

न जाने कैसी पशोपेश में तुमने उलझा रखा है,
तुम्हें जीतने के लिए तुम्हें हराऊँ कैसे।

तुमने तो कह दिया तुम्हें भूल जाना अच्छा है,
ख़ुद को पाने के लिए तुम्हें गवाऊँ कैसे।।