ये कैसा तरस मैं ख़ुद पर खाने जा रहा हूँ,
अपनी मौत की ख़बर मैं ख़ुद सुनाने जा रहा हूँ।।
दो आँखे भी नहीं कमा पाया मैं ज़िन्दगी भर,
अपने जनाज़े में मैं आँसू बहाने जा रहा हूँ।
बूँद बनकर जिया तो सिर्फ टपकता ही रहा,
आज बादल बनकर आसमान में छाने जा रहा हूँ।
सब कुछ ख़ो दिया इस ज़िन्दगी के सफ़र में,
आज उन सभी रिश्तों को पाने जा रहा हूँ।।
लफ़्ज़ों की मिठास से अनजान ही रहा हूँ मैं,
आज मोहब्बत की धुन को गाने जा रहा हूँ।।
जिस ज़िन्दगी को इस ज़िन्दगी में मैं जी नहीं पाया,
उस ज़िन्दगी को मैं एक और दफ़ा लाने जा रहा हूँ।।
ये कैसा तरस में ख़ुद पर खाने जा रहा हूँ,
अपनी मौत की ख़बर मैं ख़ुद सुनाने जा रहा हूँ।।
Beautifully expressed
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