तुम्हारे बदन पर मेरी उँगलियों की लिखावट याद आती है,
तुम्हारे होठों पर सुर्ख़ लाली की सजावट याद आती है।।
वो नज़दीकियाँ इन आँखों में आज भी उतनी जवान है,
उन नज़दीकियों में तेरी साँसों की गरमाहट याद आती है।।
शायद देर से आने की आदत वही बरक़रार है अभी तक,
आज उन शामों में तेरी झुंझलाहट याद आती है।।
यहाँ बेवजह नाख़ुश से रहते है सभी नजाने क्यों,
यहाँ आकर मुझे तेरे गुस्से की बनावट याद आती है।।
कौन जानता है वो कुचला कौन गया, क्या फ़र्क़ पड़ता है,
इन ग़ैरों की मतलबी दुनिया में तेरी घबराहट याद आती है।।
कुछ बात थी तुम्हारे छूने में,एक अलग सा एहसास था,
अब इन तनहा रातों में वो सरसराहट याद आती है।।
मालुम नहीं कुछ बचा पाया हूँ क्या,
मुझे अब मेरी आहाट याद आती है।।