Thursday, 20 July 2017

याद

तुम्हारे बदन पर मेरी उँगलियों की लिखावट याद आती है,
तुम्हारे होठों पर सुर्ख़ लाली की सजावट याद आती है।।

वो नज़दीकियाँ इन आँखों में आज भी उतनी जवान है,
उन नज़दीकियों में तेरी साँसों की गरमाहट याद आती है।।

शायद देर से आने की आदत वही बरक़रार है अभी तक,
आज उन शामों में तेरी झुंझलाहट याद आती है।।

यहाँ बेवजह नाख़ुश से रहते है सभी नजाने क्यों,
यहाँ आकर मुझे तेरे गुस्से की बनावट याद आती है।।

कौन जानता है वो कुचला कौन गया, क्या फ़र्क़ पड़ता है,
इन ग़ैरों की मतलबी दुनिया में तेरी घबराहट याद आती है।।

कुछ बात थी तुम्हारे छूने में,एक अलग सा एहसास था,
अब इन तनहा रातों में वो सरसराहट याद आती है।।

मालुम नहीं कुछ बचा पाया हूँ क्या,
मुझे अब मेरी आहाट याद आती है।।

Wednesday, 19 July 2017

तुम

रुतबा इज़्ज़त, प्यार मोहब्बत,
तुम्हें सब मानते हैं।
अब तक तो तुम सब कुछ थी मेरी,
चलो आज से तुम्हे रब मानते हैं।।

माना कि तुम्हे पाने के लिए
कुछ किया नहीं हमने,
मगर इबादतों से हम कभी उठे नहीं
ये बात यहाँ सब जानते है।।

फ़क़त चाँद के पास ही चांदनी है
इस बात से तुम्हे इंकार कहाँ,
मगर सितम इस बात का है,
मगर ये बात सितारे कब मानते है।।

इश्क़ के दौर में कहानियाँ बहुत है,
कौन-सी हक़ीक़त है कौन जनता है।
हम हाल-ए-दिल बयाँ करेंगे जब,
मोहब्बत वो हमारी तब मानते हैं।।

यक़ीन कहीं न कहीं उन्हें भी है अपने दिल में,
पूरी शिद्दत से निभाते हैं हम जब ठानते है।।

अब तक तो तुम सब कुछ थी मेरी,
चलो आज से तुम्हे रब मानते हैं।।