Saturday 1 October 2016

दुल्हन

अरमानों का जोड़ा पहने, संस्कारों की चुनरी ओढे,
अब विदा हो चली है।
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।

फेरों के बाद दुकड़िये मेँ इंतज़ार कर रही है,
पड़ोस की चाची दूर की बुआ सब प्यार कर रही है।
एकटक देखे माँ किवाड़ पर खड़ी है,
सोचती है बेटी होगई बड़ी है।।
कितने स्नेह से सखियों ने मेहन्दी लगाई है,
कितने प्यार से भैया ने डोली सजाई है।
पिताजी आँसू छुपाये व्यस्त हुए है,
शायद दो पल के लिए अभ्यस्त हुए है।।
दुआओं से आज झोली घनी है,
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।

सफ़र मीलों का-सा लगता है,
दुकड़िये से डोली तक।
दुनिया अब सिमट गई थी,
बाबुल से हमजोली तक।।
वो आँगन छोड़ चली है,
वो मधुबन छोड़ चली है।
वो बचपन छोड़ चली है,
वो बंधन छोड़ चली है।।
कुछ नए अरमान मन में संजोकर,
वो विदा हो चली है।
मेरी बहन आज दुल्हन बनी है।।