मैं प्रेम था उसके मंदिर का,
वो इश्क़ थी मेरी दरगाह की।
ना जात पात ना धरम काज
वो खूबसूरत सी दुनिया थी।
न पता दिखा न नाम सुना,
हम दोनों खो गए आँखों में।
किसे फ़िक्र थी जंग छिड़ी थी,
जब सो गए उसकी बाहों में।
सर पर मेरे टोपी थी,
उसने भी घूँघट ओढ़ा था।
किसे पता क्या ख़बर किसे थी,
ये कितना बड़ा रोड़ा था।
कुछ लोग आ गये तलवारें लेकर,
कुछ ने त्रिशूल पकड़ा था।
गुल आ गया सामने लेकिन
बुलबुल को जंजीरों में जकड़ा था।
धर्म और मज़हब से ऊपर
ये उनकी प्रेम कहानी थी।
बस आने वाली नस्लों को
इतनी-सी बात सुननी थी।।