Monday, 1 July 2019

मेरा गाँव

ओस को अपनी कलम में भरकर
मैं फूलों पर कुछ लिखता हूँ,
एक नई सुबह का गीत कोई
उस मीठी धूप पर लिखता हूँ।

चिड़िया की चहचहाहट को
पत्तों की सरसराहट को,
उस घास की नरमाहट को
एक अर्थ प्रदान करता हूँ।
एक नई सुबह का गीत कोई
उस मीठी धूप पर लिखता हूँ।

घोंसले से उड़े परिंदे
बादल से हाथ मिलाते हैं,
दूर किसी बिदेस से कोई
दाना चुगने आते हैं।
मुँह धोती गुलशन ताल पर
और कौवे संग नहाते है,
अपने-अपने गाँव के किस्से
सब आपस में सुनाते हैं।
ये मेरे गांव की सुबह थी,
मैं अब भी इस सुबह में दिखता हूँ।
एक नई सुबह का गीत कोई
उस मीठी धूप पर लिखता हूँ।।