यूँ तो रिश्तों की कोई गिनती नही
रिश्तेदारी की दुनिया में,
पर हमारे रिश्ते की बात कुछ और है।
अपनों की-सी बात अपनों में ही मिलती नही
समझदारी की दुनिया में,
पर तुम्हारे अपनेपन की बात कुछ और है।
लापरवाही और बेपरवाही सब जन्म से सीख जाते हैं,
ज़िम्मेदारी और समझदारी क्या होती है,
तुम्हारे बाद समझ में आती है।
हर रिश्ते की थोड़ी-थोड़ी मिठास लेकर
इस रिश्ते की बुनियाद होती है,
भाई का मतलब तब समझ आता है
जब वजूद में कोई बहन होती है।
कुछ कच्ची पक्की रोटी सा
कुछ खट्टी मिट्ठी टॉफी सा,
प्यार इसमें मिल जाता है।
कुछ नकली आँख मिचोली हो
कुछ हँसी खेल ठिठोली हो,
वो रिश्ता भाई-बहन हो जाता है।।