Tuesday, 9 May 2017

कवि

मैं एक कवि हूँ,
ज़िन्दगी के पन्नों पर
वक्त की कलम से,
मैं कुछ लिखता हूँ।
अपनी भावनाओं को,
उनकी आँखों से देखता हूँ,
उनके आँसू के रंग समेट
अपने भावों में लिखता हूँ।
मैं एक कवि हूँ,
जाने क्या करता हूँ।।

बुलबुलों से हल्के, पत्थर से भारी,
जैसे ख़्याल आते है।
ये भावना ये चेतना जाने क्या
बवाल मचाते है।।
अनगिनत से लगते है
ये बेहिसाब ख़्याल,
नई कहानी लिख जाते है
करके एक सवाल।।
मैं कलाकार हूँ खूंखार नही,
पूरी नफरत भी नही करता
और अधूरा प्यार भी।।
तुम मेरे कोमल बुलबुलों की तरह हो,
जो उड़ा ले जाते है मुझे ख़्यालों की दुनिया में,
भावनाओं का नया गीत लिखने को।

और फिर छोड़ जाते है मुझे नए बुलबुले की तलाश में
एक नए गीत की रचना करने को।
मैं एक कवि हूँ,
जाने क्या करता हूँ,
जाने क्या लिखता हूँ।।