Tuesday, 3 November 2015

प्रेम

ये प्रेम नहीं है सावन का,
ये प्रेम नहीं है रावण का।
ये तार दिलों के बीच जुड़े,
ये प्रेम बड़ा है पावन सा।

संग-संग बीते हम,
हर गर्मी बरसात में।
हम जवां होते रहे,
हर नई मुलाकात में।

जब वक्त का पहिया चलता है,
जब उगता सूरज ढलता है।
जब आँखों में पलकों के नीचे,
कोई प्यारा सपना पलता है।

एक सुन्दर संसार बनाये हम,
एक महकती फुलवार बनाये हम।
सुबह को होली शाम दिवाली,
 संग हर बार मनाये हम।

एक दिन  वो भी आना है,
जब हमको रुख़्सत हो जाना है।
तेरी बाँहो की शैय्या में लेटे हो,
और आँखों में आँसू लपेटे हो।

आओ प्रिय विदा ले हम,
एक छोटी-सी आस लिए।
फिर मिलेंगे उसी कक्षा में,
एक नई शुरुआत लिए। 

Monday, 2 November 2015

आज़ाद पंछी

मैं आज़ाद पंछी,
दो डाल का निवासी हूँ।
एक डाल मस्जिद में पड़ती,
तो दूजे मैं  काशी हूँ।

पलक झपकते ही उड़ जाऊँ,
 एक डाल से एक डाल।
फ़िक्र नही कल आज की,
बीते महीने साल।

आसमान में गोते लगाते,
नज़र पड़े जब इस धरा पे।
एक अजब चित्र दिख जाता,
जो मेरे मन को चुभ जाता।

इस सुन्दर धरती पर,
एक रेखा लम्बी-सी खिंची हुई।
देखे कोई, तो लगे है ऐसे,
जैसे दो टुकड़ों में बँटी हुई।

जो इस पार वो इस पार,
जो उस पार वो उस पार।
लांघ न पाये बड़े-बड़े भी,
दिल की ये ऊँची दीवार।

पर न रुकता मैं कभी भी,
और न ही कोई रोक पाता है।
मज़ा तो खुल के जीने में है,
बंद पिंजरे में कौन उड़ पाता है।

न रुकी हवा न रुके परिंदे,
तुम्हारी इस दीवार से।
पता नहीं न जाने तुम,
क्यों घबराते प्यार से ?

एक बार दीवार गिराकर देखो,
दिल में प्यार जगाकर देखो।
सुकूँ की नींद तुम सो पाओगे,
वरना लड़ते-लड़ते मर जाओगे।।