मौसम
आज मौसम कुछ अजीब था,
ठंडी- ठंडी हवा साँसों को जमा रही थी।
एक अलग-सी बेबसी,
लाचारी महसूस हो रही थी।
धीरे-धीरे बारिश तेज़ हो रही थी,
और तेज़ बारिश के साथ,
बदन ठंडा होने लगा था।
टप-टप बारिश चहरे पर पड रही थी,
फिर धीरे से सरक जाती थी,
गर्दन पर, जैसे कहीं पहुँचने जल्दी हो।
सांय-सांय करके, हवा कानों को छूती हुई,
चहरे को सुखा रही थी।
पर बारिश की एक और लहर आई,
और ये फिर से भीग गया।
काफ़ी देर तक ये सिलसिला,
यूँही चलता रहा।
मैं सूखता, तो कभी भीगता रहा।
फिर एकदम से ख़्याल आया,
कि मैं थोड़ा आगे चलता हूँ,
एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक।
शून्य को तकता हुआ, मैं
चला जा रहा था।
मन बेचैन था, वहां पहुचने के लिए,
ये पता होते हुए भी के,
उसे हवाओं का और बारिश का,
सामना तो करना ही पड़ेगा।
जैसे- तैसे मैं,
वहां पहुंच ही गया।
अब बारिश थम चुकी थी,
हवा की सरसराहट कम हो गई थी।
सोचा मैंने की थोड़ी देर रुकता हूँ,
देखता हूँ आस-पड़ोस को।
सड़क खाली पड़ी थी,
एकदम सन्नाटा जैसे,
जैसे वहां कभी कोई था ही नही।
फिर दूर एक बच्चों का झुण्ड दिखता है।
जो न जाने कबसे, उन तेज़ हवाओं में,
अपनी छोटी-सी, कागज़ की,
नाव तैराने की कौशिश कर रहे थे।
कभी नाली में पैर पड़ जाता,
तो कभी फिसल कर गिर जाते,
पर नाव को डूबने नहीं दिया।
पूरी मस्ती के साथ,
अपने दोस्तों के साथ, उस नाव को,
लेकर आगे बढ़ रहे थे।
हँसते गाते मुस्कुराते,
बिना इस फ़िक्र के,
कि कही वो नाव डूब न जाये।
और सच में, वो डूबी नहीं,
पता नहीं कैसे, पर तैर रही थी,
शायद ये उनका विश्वास था,
खुद पर, और उस नाव पर।
उन्हें देखकर मेरे चहरे पर,
एक मुस्कराहट आई।
अब मन में कोई डर नहीं था,
सारी बेचैनी एक दम से मिट गई थी।
शायद ये वो एहसास था,
जो मुझे दोबारा जीना था,
शायद इसी के लिए,
मुझे दोबारा जीना है ॥
ठंडी- ठंडी हवा साँसों को जमा रही थी।
एक अलग-सी बेबसी,
लाचारी महसूस हो रही थी।
धीरे-धीरे बारिश तेज़ हो रही थी,
और तेज़ बारिश के साथ,
बदन ठंडा होने लगा था।
टप-टप बारिश चहरे पर पड रही थी,
फिर धीरे से सरक जाती थी,
गर्दन पर, जैसे कहीं पहुँचने जल्दी हो।
सांय-सांय करके, हवा कानों को छूती हुई,
चहरे को सुखा रही थी।
पर बारिश की एक और लहर आई,
और ये फिर से भीग गया।
काफ़ी देर तक ये सिलसिला,
यूँही चलता रहा।
मैं सूखता, तो कभी भीगता रहा।
फिर एकदम से ख़्याल आया,
कि मैं थोड़ा आगे चलता हूँ,
एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक।
शून्य को तकता हुआ, मैं
चला जा रहा था।
मन बेचैन था, वहां पहुचने के लिए,
ये पता होते हुए भी के,
उसे हवाओं का और बारिश का,
सामना तो करना ही पड़ेगा।
जैसे- तैसे मैं,
वहां पहुंच ही गया।
अब बारिश थम चुकी थी,
हवा की सरसराहट कम हो गई थी।
सोचा मैंने की थोड़ी देर रुकता हूँ,
देखता हूँ आस-पड़ोस को।
सड़क खाली पड़ी थी,
एकदम सन्नाटा जैसे,
जैसे वहां कभी कोई था ही नही।
फिर दूर एक बच्चों का झुण्ड दिखता है।
जो न जाने कबसे, उन तेज़ हवाओं में,
अपनी छोटी-सी, कागज़ की,
नाव तैराने की कौशिश कर रहे थे।
कभी नाली में पैर पड़ जाता,
तो कभी फिसल कर गिर जाते,
पर नाव को डूबने नहीं दिया।
पूरी मस्ती के साथ,
अपने दोस्तों के साथ, उस नाव को,
लेकर आगे बढ़ रहे थे।
हँसते गाते मुस्कुराते,
बिना इस फ़िक्र के,
कि कही वो नाव डूब न जाये।
और सच में, वो डूबी नहीं,
पता नहीं कैसे, पर तैर रही थी,
शायद ये उनका विश्वास था,
खुद पर, और उस नाव पर।
उन्हें देखकर मेरे चहरे पर,
एक मुस्कराहट आई।
अब मन में कोई डर नहीं था,
सारी बेचैनी एक दम से मिट गई थी।
शायद ये वो एहसास था,
जो मुझे दोबारा जीना था,
शायद इसी के लिए,
मुझे दोबारा जीना है ॥